Tuesday, December 22, 2009

Shirdi Sai Baba Chavadi Utsav|Palki Procession|SHirdi Sai baba Chavadi Procession Cenetary Celebrations| 100 Years of Palki Procession

Shri Shirdi Sai Baba Chavadi Utsav ( Palki Procession )




Shri Shirdi Sai Baba Chavadi Utsav(Palki Procession) 100 Glorious years
Shirdi Sai baba Chavadi Procession Cenetary celebrations
100 Years of Palki Procession on 10 December 2009 THURSDAY
Shri Sai satchrita Chap 37 describes the Chavadi Procession of Sai Baba
Group Parayan 100 Chavadi Procession Year on Sai-ka-Aangan of Chapter 37 From Shri Sai satcharita



Any devotee going to Shirdi will first have darshan in Samadhi Mandir and then after devotees' step automatically proceeds to Dwarkamai and Chavadi. These two places give us feeling of Sai Baba's presence even today.

Actually, Chavadi means a place for discussion to give justice, but this Chavadi of Shirdi became a place of residence of God Incarnation - Sai Baba. Late Shri Nimbalkar has thrown some light on the reason why Baba started to sleep in Dwarkamai and Chavadi on every alternate day in his explainatory book of Shri Saitcharitra originally written by Hemadpant (Govindrao Dabholkar) in Marathi Language.


"Once due to heavy rain Dwarkamai was flooded with water and there was no dry space for Baba to sleep. So devotees took Baba to Chavadi which is situated nearby and Baba was taken back to Dwarkamai. Since then Baba started sleeping in Dwarkamai and Chavadi every alternate day."


१००वे चावडी महोत्सव वर्षगाठ की शुभकामनाएं
धन्य है श्रीसाई, जिनका जैसा जीवनथा, वैसी ही अवर्णनीय गति औरक्रियाओं से पूर्ण नित्य के कार्यक्रम भी कभी तो वे समस्त सांसारिक कार्योंसे अलिप्त रहकर कर्मकाण्डी से प्रतीतहोते और कभी ब्रहमानंद और कभीआत्मज्ञान में निमग्न रहा करते थे कभी वे अनेक कार्य करते हुए भीउनसे असंबन्ध रहते थे यघपिकभी-कभी वे पूर्ण निष्क्रिय प्रतीतहोते, तथापि वे आलसी नहीं थे प्रशान्त महासागर की नाईं सदैवजागरुक रहकर भी वे गंभीर, प्रशान्तऔर स्थिर दिखाई देते थे उनकीप्रकृति का वर्णन तो सामर्थ्य से परे है

यह तो सर्व विदित है कि वेबालब्रहमचारी थे वे सदैव पुरुषों कोभ्राता तथा स्त्रियों को माता या बहिनसदृश ही समझा करते थे उनकीसंगति द्घारा हमें जिस अनुपम त्रानकी उपलब्धि हुई है, उसकी विस्मृतिमृत्युपर्यन्त होने पाये, ऐसी उनकेश्रीचरणों में हमारी विनम्र प्रार्थना है हम समस्त भूतों में ईश्वर का ही दर्शनकरें और नामस्मरण की रसानुभूतिकरते हुए हम उनके मोहविनाशकचरणों की अनन्य भाव से सेवा करतेरहे, यही हमारी आकांक्षा है

वे एक दिन मसजिद में और दूसरे दिनचावड़ी में विश्राम किया करते थे औरयह कार्यक्रम उनकी महासमाधिपर्यन्त चालू रहा भक्तों ने चावड़ी में नियमित रुप से उनका पूजन-अर्चन 10 दिसम्बर, सन् 1909 से आरम्भ कर दिया था ।


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||Om Shri Sai Nathaya Namah||

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