Wednesday, February 10, 2010

Mantras For Everyone & Everything-Shirdi Sai baba Mantras & Shlokas

Mantras For Everyone & Everything~~~
१॰ विपत्ति-नाश के लिये
“राजिव नयन धरें धनु सायक। भगत बिपति भंजन सुखदायक।।”
२॰ संकट-नाश के लिये
“जौं प्रभु दीन दयालु कहावा। आरति हरन बेद जसु गावा।।
जपहिं नामु जन आरत भारी। मिटहिं कुसंकट होहिं सुखारी।।
दीन दयाल बिरिदु संभारी। हरहु नाथ मम संकट भारी।।”
३॰ कठिन क्लेश नाश के लिये
“हरन कठिन कलि कलुष कलेसू। महामोह निसि दलन दिनेसू॥”
४॰ विघ्न शांति के लिये
“सकल विघ्न व्यापहिं नहिं तेही। राम सुकृपाँ बिलोकहिं जेही॥”
५॰ खेद नाश के लिये
“जब तें राम ब्याहि घर आए। नित नव मंगल मोद बधाए॥”
६॰ चिन्ता की समाप्ति के लिये
“जय रघुवंश बनज बन भानू। गहन दनुज कुल दहन कृशानू॥”
७॰ विविध रोगों तथा उपद्रवों की शान्ति के लिये
“दैहिक दैविक भौतिक तापा।राम राज काहूहिं नहि ब्यापा॥”
८॰ मस्तिष्क की पीड़ा दूर करने के लिये
“हनूमान अंगद रन गाजे। हाँक सुनत रजनीचर भाजे।।”
९॰ विष नाश के लिये
“नाम प्रभाउ जान सिव नीको। कालकूट फलु दीन्ह अमी को।।”
१०॰ अकाल मृत्यु निवारण के लिये
“नाम पाहरु दिवस निसि ध्यान तुम्हार कपाट।
लोचन निज पद जंत्रित जाहिं प्रान केहि बाट।।
११॰ सभी तरह की आपत्ति के विनाश के लिये / भूत भगाने के लिये
“प्रनवउँ पवन कुमार,खल बन पावक ग्यान घन।
जासु ह्रदयँ आगार, बसहिं राम सर चाप धर॥”
१२॰ नजर झाड़ने के लिये
“स्याम गौर सुंदर दोउ जोरी। निरखहिं छबि जननीं तृन तोरी।।”
१३॰ खोयी हुई वस्तु पुनः प्राप्त करने के लिए
“गई बहोर गरीब नेवाजू। सरल सबल साहिब रघुराजू।।”
१४॰ जीविका प्राप्ति केलिये
“बिस्व भरण पोषन कर जोई। ताकर नाम भरत जस होई।।”
१५॰ दरिद्रता मिटाने के लिये
“अतिथि पूज्य प्रियतम पुरारि के। कामद धन दारिद दवारि के।।”
१६॰ लक्ष्मी प्राप्ति के लिये
“जिमि सरिता सागर महुँ जाही। जद्यपि ताहि कामना नाहीं।।
तिमि सुख संपति बिनहिं बोलाएँ। धरमसील पहिं जाहिं सुभाएँ।।”
१७॰ पुत्र प्राप्ति के लिये
“प्रेम मगन कौसल्या निसिदिन जात न जान।
सुत सनेह बस माता बालचरित कर गान।।’
१८॰ सम्पत्ति की प्राप्ति के लिये
“जे सकाम नर सुनहि जे गावहि।सुख संपत्ति नाना विधि पावहि।।”
१९॰ ऋद्धि-सिद्धि प्राप्त करने के लिये
“साधक नाम जपहिं लय लाएँ। होहिं सिद्ध अनिमादिक पाएँ।।”
२०॰ सर्व-सुख-प्राप्ति के लिये
सुनहिं बिमुक्त बिरत अरु बिषई। लहहिं भगति गति संपति नई।।
२१॰ मनोरथ-सिद्धि के लिये
“भव भेषज रघुनाथ जसु सुनहिं जे नर अरु नारि।
तिन्ह कर सकल मनोरथ सिद्ध करहिं त्रिसिरारि।।”
२२॰ कुशल-क्षेम के लिये
“भुवन चारिदस भरा उछाहू। जनकसुता रघुबीर बिआहू।।”
२३॰ मुकदमा जीतने के लिये
“पवन तनय बल पवन समाना। बुधि बिबेक बिग्यान निधाना।।”
२४॰ शत्रु के सामने जाने के लिये
“कर सारंग साजि कटि भाथा। अरिदल दलन चले रघुनाथा॥”
२५॰ शत्रु को मित्र बनाने के लिये
“गरल सुधा रिपु करहिं मिताई। गोपद सिंधु अनल सितलाई।।”
२६॰ शत्रुतानाश के लिये
“बयरु न कर काहू सन कोई। राम प्रताप विषमता खोई॥”
२७॰ वार्तालाप में सफ़लता के लिये
“तेहि अवसर सुनि सिव धनु भंगा। आयउ भृगुकुल कमल पतंगा॥”
२८॰ विवाह के लिये
“तब जनक पाइ वशिष्ठ आयसु ब्याह साजि सँवारि कै।
मांडवी श्रुतकीरति उरमिला, कुँअरि लई हँकारि कै॥”
२९॰ यात्रा सफ़ल होने के लिये
“प्रबिसि नगर कीजै सब काजा। ह्रदयँ राखि कोसलपुर राजा॥”
३०॰ परीक्षा / शिक्षा की सफ़लता के लिये
“जेहि पर कृपा करहिं जनु जानी। कबि उर अजिर नचावहिं बानी॥
मोरि सुधारिहि सो सब भाँती। जासु कृपा नहिं कृपाँ अघाती॥”
३१॰ आकर्षण के लिये
“जेहि कें जेहि पर सत्य सनेहू। सो तेहि मिलइ न कछु संदेहू॥”
३२॰ स्नान से पुण्य-लाभ के लिये
“सुनि समुझहिं जन मुदित मन मज्जहिं अति अनुराग।
लहहिं चारि फल अछत तनु साधु समाज प्रयाग।।”
३३॰ निन्दा की निवृत्ति के लिये
“राम कृपाँ अवरेब सुधारी। बिबुध धारि भइ गुनद गोहारी।।
३४॰ विद्या प्राप्ति के लिये
गुरु गृहँ गए पढ़न रघुराई। अलप काल विद्या सब आई॥
३५॰ उत्सव होने के लिये
“सिय रघुबीर बिबाहु जे सप्रेम गावहिं सुनहिं।
तिन्ह कहुँ सदा उछाहु मंगलायतन राम जसु।।”
३६॰ यज्ञोपवीत धारण करके उसे सुरक्षित रखने के लिये
“जुगुति बेधि पुनि पोहिअहिं रामचरित बर ताग।
पहिरहिं सज्जन बिमल उर सोभा अति अनुराग।।”
३७॰ प्रेम बढाने के लिये
सब नर करहिं परस्पर प्रीती। चलहिं स्वधर्म निरत श्रुति नीती॥
३८॰ कातर की रक्षा के लिये
“मोरें हित हरि सम नहिं कोऊ। एहिं अवसर सहाय सोइ होऊ।।”
३९॰ भगवत्स्मरण करते हुए आराम से मरने के लिये
रामचरन दृढ प्रीति करि बालि कीन्ह तनु त्याग ।
सुमन माल जिमि कंठ तें गिरत न जानइ नाग ॥
४०॰ विचार शुद्ध करने के लिये
“ताके जुग पद कमल मनाउँ। जासु कृपाँ निरमल मति पावउँ।।”
४१॰ संशय-निवृत्ति के लिये
“राम कथा सुंदर करतारी। संसय बिहग उड़ावनिहारी।।”
४२॰ ईश्वर से अपराध क्षमा कराने के लिये
” अनुचित बहुत कहेउँ अग्याता। छमहु छमा मंदिर दोउ भ्राता।।”
४३॰ विरक्ति के लिये
“भरत चरित करि नेमु तुलसी जे सादर सुनहिं।
सीय राम पद प्रेमु अवसि होइ भव रस बिरति।।”
४४॰ ज्ञान-प्राप्ति के लिये
“छिति जल पावक गगन समीरा। पंच रचित अति अधम सरीरा।।”
४५॰ भक्ति की प्राप्ति के लिये
“भगत कल्पतरु प्रनत हित कृपासिंधु सुखधाम।
सोइ निज भगति मोहि प्रभु देहु दया करि राम।।”
४६॰ श्रीहनुमान् जी को प्रसन्न करने के लिये
“सुमिरि पवनसुत पावन नामू। अपनें बस करि राखे रामू।।”
४७॰ मोक्ष-प्राप्ति के लिये
“सत्यसंध छाँड़े सर लच्छा। काल सर्प जनु चले सपच्छा।।”
४८॰ श्री सीताराम के दर्शन के लिये
“नील सरोरुह नील मनि नील नीलधर श्याम ।
लाजहि तन सोभा निरखि कोटि कोटि सत काम ॥”
४९॰ श्रीजानकीजी के दर्शन के लिये
“जनकसुता जगजननि जानकी। अतिसय प्रिय करुनानिधान की।।”
५०॰ श्रीरामचन्द्रजी को वश में करने के लिये
“केहरि कटि पट पीतधर सुषमा सील निधान।
देखि भानुकुल भूषनहि बिसरा सखिन्ह अपान।।”
५१॰ सहज स्वरुप दर्शन के लिये
“भगत बछल प्रभु कृपा निधाना। बिस्वबास प्रगटे भगवाना।।”

Monday, February 8, 2010

Shirdi Sai BABA Mantras & Shlokas|Sri Sai Dhyana Mantra| Sai Stawak|Shri Sai nath Mahima Shtrotram

Shirdi Sai Mantra & Shlokas
Shirdi Sai BABA Mantras & Shlokas|Sri Sai Dhyana Mantra|
Sai Stawak|Shri Sai nath Mahima Shtrotram
Sri Sai Dhyana Mantra
SAI STAWAK
श्री साईं नाथ महिम्ना स्तोत्रम
Sri Sai Dhyana Mantra
Namami Sai Guru paad pankajam,
Karomi Baba tava pujanam varam.
Vadami Sai shubhanaam nirmalam.
Smarami Baba tava tatvamavyayam.
Satchidanand rupaya,
bhaktanugraha karine,
Shirdinya sthaikadehai Saishaya namoh namah.
Mritunjayaya Rudraya sarvadaya cha Vishnavey,
Srishtey cha trisvarupaya Sainathaya te namah.
Sai, Saiti, Saiti Smartavyam naam sajjanaye,
Sahasranama tatulyam Sainama vara pradam.
Sri Saiti sadaa snanam,
Sri Saiti sadaa japaha,
Sri Saiti sadaa dhyanam,
sadaa Saiti kirtanam.
Om Sai Ram.
SAI STAWAK
Tubhyam namami sai nathaye
Tubhyam namami Narayanaye
Hey Deen-bando Tubhyam namami
Tubhyam namami Jagdeeshwaraye
Tubhyam namami sai nathay
Tubhyam namami sai nathaye
Tubhyam namami Madhusoodnaye
Hey Bahkt-pranam Tubhyam namami
Tubhyam namami Vasudevaye
Tubhyam namami sai nathaye
Tubhyam namami sai nathaye
Tubhyam namami Kaalateetaye
Hey Mukti-data Tubhyam namami
Tubhyam namami Awdhootaye
Tubhyam namami sai nathaye
Tubhyam namami sai nathaye
Tubhyam namami Anantaye
Hey Kripa-sagar Tubhyam namami
Tubhyam namami Jogirajaye
Tubhyam namami sai nathay
Tubhyam namami sai nathaye
Tubhyam namami Sachhidanandaye
Hey Daya-sindho Tubhyam namami
Tubhyam namami Jagannathaye
Tubhyam namami sai nathaye
Tubhyam namami sai nathaye
Tubhyam namami Dattatreyaye
Hey Kalpavriksham Tubhyam namami
Tubhyam namami Parmeshwaraye
Tubhyam namami sai nathaye
Tubhyam namami sai nathaye
Tubhyam namami Siddhidataye
Hey Shantakaram Tubhyam namami
Hey Gurumurthe Tubhyam namami
Tubhyam namami sai nathaye

साईं नाथ महिम्ना स्तोत्रम
सदा सत्सवारुपम चिदानंदा कंडम जगात्सम्भावास्थाना संहार हे तुम
स्वभाक्तेच्चाया मनुसम दर्स्यम्तम नममिस्वरम सद्गुरुम सैनाथं ।
भावाध्वंताविद्वंसा मर्तान्दमिदायम मनोवाग्गातिर्तम मुनिर्ध्यानागाम्यम
जगत व्यापकं निर्मलं निर्गुणं त्वं नममिस्वरम सद्गुरुम सैनाथं ।
भाव्बम्भोधी मग्नार्दितानाम जनानाम स्वपदा सृतानाम स्वभाक्तिप्रियानाम
समुधारानार्था कलौ सम्भावानतम नममिस्वरम सद्गुरुम सैनाथं ।
सदा निम्बव्र्क्सस्य मुलाधिवासत सुधास्त्राविणं तितका मप्या प्रियं तं
तरुण कल्पव्र्क्सधिकम साधयन्तं नममिस्वरम सद्गुरुम सैनाथं ।
सदा कल्पव्र्क्सस्य तस्याधिमूले भावेद्भावाबुद्धाया सपर्यधिसेवाम
न्रुनाम कुर्वथाम भुक्तिमुक्ति प्रदम्तम नममिस्वरम सद्गुरुम सैनाथं ।
अनेकाश्रुता तर्क्य लिलाविलासिः समविस्क्रतेसना भास्वत्प्रभावं
अहम्भावाहिनाम प्रसन्नात्मभावं नममिस्वरम सद्गुरुम सैनाथं ।
सातम विश्राम राम मेवाभिरामम सदा सज्जनिः संस्तुतं संनामाद्धिः
जनामोदादम भक्ताभाद्र प्रधम तं नममिस्वरम सद्गुरुम सैनाथं ।
अजन्मध्यामेक्हम परम ब्रह्म साक्षात स्वयं संभवं रामामेवा वाथिर्नाम
भवदार्सनात्सम पुनीतः प्रबोहम नममिस्वरम सद्गुरुम सैनाथं ।
श्री साईं श कृपा निधे खिला द्रुमा सर्वर्थासिद्धिप्रदा
युस्मात्पदाराजः प्रभावमतुलं धतापिवक्ता क्षमः
सद्भाक्त्य सरनाम कृतान्जलिपुतः सम्प्रपितो समी प्रभो
श्रीमत साईं परेसपदा कमालान्नान्याच्चारान्यम मामा
सैरुपधरा राघवोत्तामाम भक्त कम विभुधा ध्रुमम प्रभुम ।
मायायोपतासित्ता सुद्धाये चिन्तया म्याहमाहर्निसम मुदा
सरत्सुधाम्सू प्रतिमा प्रकाशम् क्रिपतापत्रम तवा साईं नाथ
त्वधियापदा सम्सृतानाम स्वच्चायाय तपमयापकरोतु ।
उपसनादैवता साईं नाथ सतवीर मयोपसनिना सतुतस्त्वं
रमेन्मनो में तवा पादयुग्मे भ्रुंगो यथाब्जे मकरंदलुब्धः ।
अनेकाजन्मर्जिता पापसंक्षयो भावेध्भावात्पदा सरोज दर्सनत
क्सम्स्व सर्वाना पुन्जकन प्रसिद साईं गुरो दयानिधे ।
श्री साईं नाथ चरनाम्रुता पुता सित्तास्तात्पदा सेवानारातः सचियानता भक्त्या
संसार जन्य दुरिताऊ धविनिर गथास्ते कैवाल्याधामा परमं समवाप्नुवन्ति ।
स्तोत्रमेतात्पठेद्भाक्त्य यो नारास्तान्मनाह सदा
सद्गुरु साईं नाथस्य कृपा पत्रं भवेद ध्रुवं ।
साईं नाथ कृपा सर्वदृसत्पद्य कुसुमावालिः
श्रेयसे च मनः सुध्याई प्रेमासुत्रेना गुम्फिता ।
गोविन्दासुरिपुत्रेना कसिनाथाभिधयिना
उपसनित्युपख्येना श्री साईं गुरवे रपिता |